अब तक के सत्पुरुषों और महापुरुषों के विचारों, सिद्धान्तों, उपदेशों और
क्रिया-कलापों को देखने से स्पष्टतः समर्थन मिल जाता है कि अहिंसा के सिद्धान्त से
किसी भी परिस्थिति और कल में मुक्ति और अमरता कदापि नहीं मिल सकता । इस सिद्धान्त
से शान्ति और आनंदमय जीवन तो व्यतीत कर सकते हैं परन्तु विद्या-तत्त्वम् या
तत्त्वज्ञान या सत्यज्ञान के सिवाय अन्य किसी भी सिद्धान्त में वह क्षमता या
सामर्थ्य नहीं कि एक जीव को भी सांसारिक, पारिवारिक, शारीरिक बंधनों से
मुक्त और काल चक्र से परे अमरता प्रदान कर सके । इच्छा भोग परमात्मा के अवतार रूप
अवतारी सत्पुरुष के राज्य में ही सम्भव है । इस प्रकार शान्ति और आनन्दमय जीवन हेतु
अहिंसा एक उत्तम-विधान या पद्धति है परन्तु मुक्ति और अमरता प्राप्ति हेतु यह
पद्धति पूर्णतः अयोग्य है। अर्थात् दूसरे शब्दों में कोई महापुरुष ही अहिंसा के
माध्यम से मुक्ति और अमरता तो दूर रही, परमात्मा या परमसत्य की जानकारी भी नहीं कर-करा सकता है। दर्शन-पहचान
और सेवार्थ शरणागत स्वीकार होगा तो कोटि-कोटि जन्मों के संस्कारित पुण्यों की पुंज
से भी बिना प्रभु कृपा के सम्भव ही नहीं है मिलना तो दूर है।